સોમવાર, 13 મે, 2013

सर जुका के माँगना अब छोड़ दिया

खुदाको लिखी हुई कविता...

सर जुका के माँगना अब छोड़ दिया,
दुआ फरियादों की जोली फैलाना छोड़ दिया,
तुजे और कितना शर्मिंदा करू मैं ?
तुजसे अब सिकवा गीला करना छोड़ दिया.

दर्द देखे है ज़माने में कई सारे,
कुछ इन्सान के तो कुछ तक़दीर के है मारे,
आरजू अब इस दिलमें कोई नहीं तेरे लिये,
तु चाहे तो डूबा दे तु चाहे पार उतारे.

हां तु मालिक है इस सारे zahaजहां और जन्नत का,
हा तु भूखा है प्यार, पूजा और मन्नत का,
काश 'आनंद' तेरा भी दिल होता इन्सानी,
तु भी मतलब समज शकता मोहबत का.